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खोता बचपन

खोता बचपन

आ गए हैं देखो कैसे भाग-दौड़ भरे पल
डर है तकनीकी दौड़ में जाएँ न फिसल।
खोया रिश्तों का महत्त्व,अपनों का प्यार
आज तकनीक ने छीना बचपन का संसार।

आज न दिखते बच्चे खेलते गुड्डा- गुड़िया
बच्चों को अब न लुभाती चहकती चिड़िया।
मोबाइल, लैपटॉप ने बनाया ऐसा दीवाना
वेबजाल ने फँसाया बुनकर ताना-बाना।

भूले चिलबिल पकड़ने के लिए भागना
तितली के रंग-बिरंगे पंख देख मुस्कुराना
याद आये नीम की डाल के मस्त झूले
झूलकर जिनमें बच्चे लगता नभ छू लें।

खो गए मिट्टी के प्यारे-प्यारे हाथी-घोड़े
विकास की होड़ बालपन पीछे छोड़े।
आधुनिक दौड़ में छूटा बच्चों का बचपन
वक़्त से पहले ही आ रहा उनमें बड़प्पन।

कहीं गरीबी के बोझ तले करता बाल मजदूरी
परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने की ऐसी मज़बूरी
खेलने की उम्र में उठाता होटल में जूठे बरतन
कड़ी धूप में तपता नाजुक़ सा उसका तन।

दूजी तरफ है अमीरी और पूरा ऐशो-आराम
किंतु माता-पिता व्यस्त है करते अपने काम
बच्चे माँ की जगह हर पल पाते धाय माता
ममता के लिए दिल सदा उनका तरसता।

बदले हुए युग की ये कैसी पहचान है
धन से ही बढ़ती परिवार की पहचान है
बच्चों की खिलखिलाती हँसी हुई गुम
भूल गए बचपन क्यों खोते जा रहे हम।


डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नॉएडा, उत्तरप्रदेश 

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7 Comments

Renu Singh"Radhe "

01-Feb-2022 12:24 PM

बहुत सुंदर रचना

Reply

Sudhanshu pabdey

01-Feb-2022 11:57 AM

Very beautiful

Reply

N.ksahu0007@writer

31-Jan-2022 05:13 PM

एक दम झकास

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